Sunday, May 9, 2010

धन्यवाद सखिजी को

यह शाम
और उसका नीलापन
उसकी गहराईयाँ
उसका आयाम
यह झील
आकाश अपने आवरण बदलता हुआ
सुबह कुछ श्याम सा
फिर नीला नीला सा
और अब शाम के संग
शाम जैसा...
और वो मेरी सखिजी
जो इस जीवन में उतरीं
मेरे साथ अनंत में दौड़ी
अनंत के मंदिर में
एक दुसरे को
हम दोनों ने
भगवान् श्री कृष्णाजी को
साथ साथ तिलक वंदन।
फिर नमन।
फिर नमस्कार।
फिर चरण स्पर्श।
फिर एक गीत।
फिर एक नृत्य
हज़ारों हज़ारों मुस्कानों ने
हमारे साथ नृत्य किया
इन आकाश गंगा के लाखों सितारों ने
हमारे हाथ थामे
हमको बीच रख कर
हमारे साथ श्री कृष्णाजी के साथ नृत्य किया।
वो क्षण
वो पल।
वो लम्हे
अनन्त में
आकाश में
उस प्रियतम के साथ
प्रियतम के साथ
जो रंग से रंग गए हैं
उस रंग
उन रंगों का धन्यवाद।
भा चली है
एक आकाश गंगा
इस ह्रदय से
अनंत के चरणों की और।

प्रणाम।
बी.ऍम.शर्मा.